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अंशु और बिट्टू

वह बहुत सर्द रात थी। दांतो की ठिठुरन को आसानी से सुना जा सकता था। अंशु और बिट्टू एक दूसरे की चद्दर खींचते हुए दांत किटकिटा रहे थे। मम्मी पापा को काफ़ी देर हो गई थी। हालांकि वे कह कर गए थे जल्दी आ जाएंगे लेकिन अभी तक नहीं लौटे थे। तभी यकायक दोनों को कुछ आवाज सुनाई दी, किसी पक्षी के पंख फड़फड़ाने की आवाज़। रात का समय था मां हिदायत देकर गई थी कि चाहे कोई भी आए दरवाज़ा मत खोलना, लेकिन झरोखे पर इस अजीब आवाज को सुनकर दोनों को लगा कि चल कर देखना चाहिए।

दोनों ने एक दूसरे से इस बारे में बात की और हिम्मत जुटाकर ठिठुरते हुए आगे बढ़े। उन्होंने देखा कि एक कबूतर पंख फड़फड़ा कर उड़ने की कोशिश कर रहा है लेकिन उसके पंख और पैरों मैं धागा फंसा हुआ था।  

यह देख कर अंशु को उसके स्कूल में सुनाई गई कहानी याद आई जिसमें एक पक्षी जाल में फंस जाता है फिर एक राहगीर जाल को काटकर पक्षी को आजाद कर देता है। अंशु ने बिट्टू की ओर इशारा किया और कहा कि हमें इसकी मदद करनी चाहिए, बिट्टू दौड़ती हुई रसोई की तरफ गई और चाकू ढूंढ़ कर लाई। दोनों ने कड़ी मशक्कत के बाद कबूतर को धागे से आज़ाद करा दिया, उन्हें लगा कि अब तो कबूतर उड़ जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ शायद कबूतर की उड़ने की क्षमता खत्म हो चुकी थी और वह इतना डर चुका था कि वह उड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। बिट्टू ने उसे हाथ में उठाया और रसोई में ले जाकर कुछ चावल के दाने खाने को दिए। थकान की वजह से कबूतर ने कुछ नहीं खाया लेकिन जब अंशु ने पानी की कटोरी सरकाई तो कबूतर ने दो-तीन घूंट पानी पिया । दोनों सोचने लगे कि इसे कैसे कुछ खिलाया जाए, जब कुछ समझ में नहीं आया तो उसे भी ले कर बिस्तर पर आ गए। अब बीच में कबूतर को बिठाकर इधर उधर दोनों लेट गए और तरह-तरह की बातें करने लगे।

हमने इसे बचाया है अब हम इसे पालेंगे और इसका कुछ नाम रख देंगे, नहीं इसे आजाद कर देंगे, इसके मम्मी पापा इसकी राह देख रहे होंगे, लेकिन जब इसको हम छोड़ देंगे तो फिर कभी इसको पहचानेंगे कैसे? इसके ऊपर कोई दूसरा रंग लगा देते हैं लेकिन रंग तो धुल जाएगा…. और क्या कर सकते हैं इसी तरह की बातें दोनों एक दूसरे से कर रहे थे। तभी अंशु ने सुझाव दिया कि इसके गले में घंटी बांध देते हैं जब भी कभी छत से गुजरेगा तो हमें पता चल जाएगा कि यह हमारा कबूतर है।

दोनों ने तय कर लिया कि कल इसके गले में घंटी बांध देंगे। यह चर्चा चल ही रही थी कि मम्मी पापा आ गए, फिर क्या था दोनों ने अपनी बहादुरी के किस्से खूब नमक मिर्ची लगाकर सुनाए, मम्मी पापा ने भी इस नेक काम के लिए बच्चों का दुलार किया । चूंकि रात काफी हो चुकी थी, बातें करते करते पता ही नहीं चला और सब सो गए।

सवेरा होते ही बिट्टू ने अंशु को जगाया और कहा जल्दी उठ देख अपना कबूतर बरामदे में उड़ रहा है बाहर जाने का रास्ता ढूंढ रहा है, अंशु ने आंखे मलते हुए कहा, “अब इसके गले में घंटी कैसे बांधेंगे”, वे इस बारे में सोच ही रहे थे कि इतने में दूध वाले भैया ने आकर दरवाज़ा खोल दिया और कबूतर पंख फड़फड़ाता हुआ उड़ गया।

About author

मेरी मां बहुत बेहतर कहानीकार है उन्हीं की सुनाई हुई कहानियों से मुझ में मूल्य आए है अब मेरी जिम्मेदारी है कि इस श्रंखला को आगे बढ़ाया जाए, वैसे मुझे बच्चों के साथ अलग अलग रचनात्मक गतिविधियां करना अच्छा लगता है और मै बच्चों से बहुत कुछ सीखता हूं खासकर खुशमिजाज रहना ।
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