दस रुपए देते हुए इमरान के वालिद ने इमरान से कहा कि जाओ और मेरे लिए तम्बाकू लेते आओ, चूंकि आज इमरान के अब्बू बहुत खुश थे तो उन्होंने इमरान की ओर इशारा करते हुए धीमी मुस्कान से कहा आते वक़्त अपने लिए कुरकुरे भी लेते आना । इमरान को यह सुनकर बहुत खुशी हुई,ऐसा कभी कभी ही होता था कि अब्बू खुशी से कहते थे कि आते वक़्त अपने लिए भी कुछ लेकर आना । यह उनका खुशी जाहिर करने का तरीका सा बन गया था, इमरान को लगा ही था की आज भी अब्बू अपनी इस खुशी का कुछ किस्सा सुनाएंगे हमेशा से ऐसा ही तो होता आया था ।
इमरान भी दस के नोट को हवा में लहराते हुए दुकान की तरफ चल पड़ा कभी वो नोट को होठों के बीच रखकर गर्दन को घुमाते हुए अटखेलियां करता, कभी नोट को गोल गोल मोड़कर उंगलियों के बीच दबाता, कभी कुछ तो कभी कुछ, थोड़ी ही देर बाद दुकान के पास पहुंचकर अपने दोस्त विशाल को चिढ़ाते हुए इमरान ने कहा, ये देख आज अब्बू ने दस रुपए दिए है और कहा है कि जो मर्जी आए खाओ । विशाल ने कहा अच्छी बात है कुछ लाओ तो मुझे भी खिलाना ,इमरान ने कहा जरूर खिलाऊंगा भाई उस दिन तुम भी तो मेरे लिए अमरूद लाए थे और यह कहते हुए दुकान के बाहर की सीढ़ियां चढ़ने लगा ।
शाम का समय था ग्राहकों की आवा जाही लगी हुई थी इतने में एक तीखी आवाज दुकानदार के कान में पड़ी अरे अंकल जी मुझे एक तम्बाकू और कुरकुरे दे दो । पसीना पोंछते हुए दुकानदार ने तम्बाकू निकाली और कहा कुरकुरे बाहर से तोड़ लो, ग्राहकों की भीड़ में दोनों पैसों का लेन देन भूल गए और इमरान समान लेकर घर की ओर लौटने लगा । रास्ते में जब उसने जेब में हाथ डाला तो हक्का बक्का सा रह गया । उसके सिर पर पसीना आ गया और धड़कन तेज हो गई वह सोचने लगा अरे पैसे तो दिए ही नहीं अब इन दस रुपयों का मैं क्या करूंगा , रकम बड़ी थी इसलिए सोचा की अब्बू को लौटा देता हूं और कह दूंगा कि जादू से दूसरा नोट बना दिया । या फिर चुपचाप बस्ते में रख लूंगा और कल मदरसे में सब बच्चों के साथ मिलकर कुछ खाऊंगा ,इमरान के अल्हड़ मन में कई उतार चढ़ाव होते रहे और आखिर में उसने तय किया कि अब्बू को नहीं बताता हूं और कल मदरसे में मौज उड़ाऊंगा ।
घर पहुंचने से तकरीबन बीस कदम पहले ही उसे अब्बू के द्वारा सुनाया हुआ एक किस्सा याद आ गया, एक दिन दोपहर में एक जनाब व्यापार के सिलसिले में शहर आए थे और जल्दबाजी में अपना एक थैला अब्बू के रिक्शे पर भूल गए । कुछ देर बाद जब अब्बू की नजर उस बैग पर पड़ी तो अब्बू ने बैग लौटाना चाहा लेकिन तब तक देर हो चुकी थी साहब दूर निकल चुके थे, अब्बू ने आस पास चौराहे पर उनको ढूंढने की खूब कोशिश की लेकिन साहब का कहीं पता नहीं चला । तब अब्बू को लगा शायद जिस शोरूम के बाहर उन साहब को बिठाया था शायद वहां कुछ सुराग मिल सके । फिर क्या था अपने पूरे सामर्थ्य से रिक्शे के पैडल पर जोर लगाते हुए जल्द ही शोरूम पर पहुंच गए और पूरा वाकया सुनाया , खुदा का शुक्र है शोरूम पर बैठे सज्जन उन साहब को जानते थे और तुंरत साहब को इत्तिला किया की एक रिक्शे वाले भैया आपका बैग लेकर आए हैं फिर क्या था देखते ही देखते साहब वहां पहुंचे और बैग सही सलामत पाकर बहुत खुश हुए । इनाम के तौर पर कुछ राशि भी देनी चाही लेकिन अब्बू ने मना कर दिया । साहब ने खुशी जाहिर करते हुए कुछ फल जो वो अपने घर ले जा रहे थे इमरान के अब्बू को दे दिए । उस दिन भी शाम को अब्बू ने दस रुपए देकर कुरकुरे खाने को कहा था ।
इस वाकये को याद करके इमरान का हृदय परिवर्तित हुआ और वह दोबारा दुकानदार के पास पहुंचा और बोला भैया उस वक़्त हड़बड़ी में मै पैसे देना भूल गया था ये लीजिए अपने दस रुपए। छोटे बच्चे की ईमानदारी देखकर दुकानदार ने तुरंत डिब्बे से कुछ चॉकलेट निकाल कर इमरान को थमाई। दुकान की सीढ़ियां उतरते वक्त उसका दिल खुशी से गदगद हो रहा था, होता भी क्यों ना आखिर आज अब्बू की हिदायत ने उसे नेकदिल जो बना दिया था