बदस्तूर घटती ज़िंदगी के अनगिनत फसाने हैं,
कुछ नये तो कुछ बहुत पुराने हैं
मैं यही सोच कर रात गुज़र देता हूँ के चल छोड़,
आज हर किसी के बस यही तराने हैं
लेकिन इन खाली पड़े घ्रोंदो मे अब मन नही लगता,
सुना है उन पंछीयों के अब कही और ठिकाने हैं
मैं फलसफा लिखता हूँ उन नाकामयाब उमीदो का,
जो उजड़ गयी बहुत पहले अब तो काटने को बचे ज़िंदगी मे ये वीराने हैं |